" To understand just one life, you have to swallow the world." Well i wont open the doors nor the windows to my world, but I'm ready to allow peep-holes!

Monday, April 23, 2007




क्या करेंगे उस मंज़र का जो दबे पांव हमें बुलाएगी,


क्या करेंगे ऐसी राह चलकर जिस्पे साथी ना रह पाएंगे?




हम कौनसा आस्मा कि चाह में जीं रहे हैं- ए ज़िन्दगी,


तू बस हमें इन चंद लम्हों में ही जीने दे-


हम इस धरती से जुडे हर गुज़रे पल में ही अपना आस्मा सजायेंगे.




हम कौनसा फ़िज़ाओं कि ताक़ में जीं रहे थे


जो तुमने हमें तूफानों से ला मिलाया?


हमतो इनही बिजलियों से दोस्ती करने लग पडे थे


जब तुमने एक फूल हमारे दामन में ला सजाया.




फूलों को भी तो हम झिझक कर ही पकड़ते थे-


कि कहीँ हम उनके और वो हमारे मुरझाने का कारन ना बने.


पर तुम्ही तो थी जिस्ने हमें उनसे दोस्ती करना सिखाया.




इसी फूल को सींचने की अब कुछ ऐसी आदत सी हो गई है हमें


कि अब ना तुम्हें उनसे मिलाने
और ना उन्हें मुरझाने का
कसूरवार ठेरा सक्तें हैं हम.

3 comments:

Anonymous said...

kuch baatein aisi..kuch baatein ankahi..y dont u write more in hindi..mohtarma bahot ankahi baatein hai yaha..saamne laaye zara

seraphicgirl1986 said...

arrey dhanyavaad, dhanyavaad!
par mujhe nahin pata ki mein hindi ke saath kitna insaaf kar paungi.
Par kisi aur din koshish zaroor karungi.
apka bahut bahut dhanyavaad! :)

Anonymous said...

the person for whom its written is very lucky ;)